We have commonly heard about the varied malefic defects in our birth chart, some of which are created depending upon our karmas and planetary positions; one of which is Kaal Sarp Yog or Kaal Sarp Dosh.
In Hindu horoscope, if all planets are between Rahu and Ketu shadow planets, the person is considered to be afflicted with Kaal sarp yog. A complete Kaal sarp yog is formed when exactly half the natal chart is unoccupied by planets. Exclusion of even one single planet outside the Rahu-Ketu axis does not signify Kaal sarp yog.
Kaal in Hindi means death whereas Sarpa means serpant or snake. Rahu and Ketu are considered serpent in astrology and hence when all planets of a kundli falls between these two planets, it ought to create dangerous effects on the person suffering from it.
For complete end of mangal dosha you can do bhat pujan, ganesh gauri pujan, mangal kalash pujan and panchamrut pujan, dahi bhat pujan and nava grah pujan in the Mangalnath shrine.
You can do ganesh gauri pujan, mangalkalalsha, punyahavachan, shodash matrika, saptagrut matrika, nandi shradha, pitru pujan, brahmin pujan, mangal grah pujan, bhatpujan, navgraha shanti, rudrapujan, havan aarti etc. for nav graha and bhat pujan.
Mars(mangal) is not the only planet in Vedic Astrology that is supposed to affect the relationship and these effects should be seen in a broader perspective of overall astrological compatibility. When Mangal is in 1st ,4th ,7th,8th and 12th house of the Janmkundli these Janmkundli are called Mangalik Janmkundli and who posses these Janmkundli called Mangalik.
Mangal being the main Graha for Aggression ,courage and confidence and have strong impact on the matters related to monetary, property, marital life ,accident's, surgery, relationship ,debts, child and heart related problems.
To satisfied the Dosh-Karak effects of Mangal and to enrich the Yog-Karak effects of Mangal this "Sarvmangal-Mangalkari - Pendent" is specially prepared and made "Siddha" with "Mahamangal-Strota","Rudra-Paath" and "Mangal-Shanti" Pujan performed nearby the origin place of Mangal at MANGALNATH-UJJAIN.
Sarvmangal-Mangalkari-Pendent is to be worn in red thread or gold chain on Tuesday in the morning time with 108 Jap of "Om Bhom Bhomay Namah:"
Mangal Dosh is considered to be very prominent in the Hindu religion during the marriages. The actual name for Mangal dosh is sumanglik dosha, which means the problems raised on the auspicious day like on the day of marriage. The hurdles in the good work are considered to be the effect of Mangal Dosh or Kuja Dosh
On this day special Pooja is done to Goddess Parvati by dressing up in the traditional dress of a married woman to represent that they want to be like Goddess Gauri for the whole life. Goddess Parvati blesses those women with all the material prosperity, wealth and the good health and the happy married life. The mangala Gauri Pooja should be done with full devotion and only the vegetarian food should be taken for the whole month of saavan. Mangla Gauri Pooja is very effective to remove the dosha of mangal from the horoscope of the women.
Mangal Dosh is considered to be very prominent in the Hindu religion during the marriages. The actual name for Mangal dosh is sumanglik dosha, which means the problems raised on the auspicious day like on the day of marriage. The hurdles in the good work are considered to be the effect of Mangal Dosh or Kuja Dosh. The girl is considered as manglik when the planet Mars is placed either in the first, fourth, seventh, eighth or twelfth house of the birth chart. The girl with the Manglik Dosh has the threat to get widow. For these girls the Kumbha Vivah is arranged and the manglik dosha nivaran Pooja is arranged to neutralize the effect of the Mangal Dosha in the horoscope.
Mars(mangal) is not the only planet in Vedic Astrology that is supposed to affect the relationship and these effects should be seen in a broader perspective of overall astrological compatibility. When Mangal is in 1st, 4th, 7th, 8th and 12th house of the Janmkundli these Janmkundli are called Mangalik Janmkundli and who posses these Janmkundli called Mangalik. Mangal being the main Graha for Aggression ,courage and confidence and have strong impact on the matters related to Monetary, Property, Marital life, Accidents, Surgery, Relationship, Debts, Child and Heart related problems.
The planetary puja is done for offering respect and worship to the nine planets. Worshipper's seeks for the blessings and fulfillment of their wishes. The offerings made in this puja are for the planets and their respective deity and these offerings communicate the person's desire to the planets.
In this puja navgrah are the chief deities, which are worshipped to get the desired result. There are nine planets, which are responsible for the happiness, and all adversities coming in our life. The nine planets or grah are as follows: surya {sun}, Chandra {moon}, mangal {mars}, budh {mercury}, guru {Jupiter}, shukra {Venus}, shani {Saturn}, Rahu and Ketu {ascending and descending node of the moon}.
The Pouring of water on shivling is called "Abhishek".When the water pouring continuous on shivling with chant of great ved mantra is called "Rudrabhishek".These are some other substance also use in rudrabhishek. We should do abhishek with
Rudrabhisek Yagya is a tradition of worshipping Lord Shiva in his Rudra avatar, in which a Shivalinga is bathed with water and other materials, which are constantly poured above it, along with chanting of Vedic mantra called the Rudra Suktha. This Yagya has been appreciated by all Vedic scriptures as one of the greatest Pujas.
Shiv Rudrabhisek Yagy is particularly performed for the sake of washing away ones immorality and agony, for bringing harmony, wealth and pleasure, along with family togetherness. Shiv Rudrabhisek Puja defends devotees from bad forces & probable dangers.
राहु शनि षडाष्टक हो , शनि राहु युति , प्रतियुति हो तो राहु की महादशा में कुफल मिलने लग जाते है ।राहु में शनि या शनि में राहु दशा में व्यक्ति जादू टोने , प्रेतबाधा से दुःख पाता है , उसके साथ धोखा होता है अतः राहु शांति अवश्य कराये ।
शाप योग का विवेचन
शाप योग किसी भी आत्मा या जीव को हानि पहुचाने के कारण व्यक्ति को प्राप्त हो सकता है ।
ज्योतिष्य आधार पर उसकी कल्पना की जा सकती है ।कि यह यह किस श्रेणी का शाप है । कालसर्प योग स्वंय एक अभिशाप है , जो पूर्व जन्म के किसी कुफल के कारण प्राप्त होता है ।परन्तु कालसर्प योग कब नही लगता या उसमे कब न्यूनता आती है ।इसका विवेचन किया जा चुका है ।
वृहत्पाराशर होरा शास्त्र में 14 तरह के शाप योग दिए गये है ।अन्य और भी कारण हो सकते है
जैसे -
1 किसी का धन हरण किया हो ।
2 चोरी , डकैती की हो
3 किसी विधवा की आत्मा को सताया हो
4 किसी गरीब की दुराशिष लगी हो ।
5 किसी साधु संत का अपमान किया हो ।
6 किसी के जीवन का हरण किया हो ।
7 किसी संतानहीन की संपदा ली हो एवं उसके निमित कुछ धर्म - कर्म नही किया हो ।
सर्प शाप योग
सर्पशाप योग का अर्थ सर्प को मारने , प्रताड़ित करने से है ।यदि किसी सर्प के जोड़े का बिछोह करा दे , तो भी सर्प शाप योग बनता है ।
दुर्मरण योग
जलघात , चोट , दुर्घटना , फाँसी , जल जाने , अकस्मात उपजे रोग से , हत्या या आत्म हत्या , ऊंचाई से गिरने , भीषण प्रहार से भारी वस्तु के नीचे दबने से इत्यादि कारणों से अचानक मृत्यु हो जाती है ।ऐसे लोगो की कुंडली मे खराब योग होते है। तथा दशा अंतर्दशा भी उस समय मारकेश होती है ।
विष कन्या योग
विष कन्या योग में जन्म लड़की क्रोधी , चीड़ चिड़ी होती है ।यदि यह लड़की किसी से वैर कर लेवे तो उसका सर्वनाश कर देती है ।पति का जीवन भी कष्टमय होता है ।
विधि विधान
मंगलवार को संध्या समय पर स्नान करके पवित्र होकर एक पंचमुखी दीपक जलाकर माँ मंगल चंडिका की पूजा श्रधा भक्ति पूर्वक करे/ माँ को एक नारियल और खीर का भोग लगाये |
उपरोक्त दोनों में से किसी एक मंत्र का मन ही मन १०८ बार जप करे तथा स्त्रोत्र का ११ बार उच्च स्वर से श्रद्धा पूर्वक प्रेम सहित पाठ करे |
ऐसा आठ मंगलवार को करे | आठवे मंगलवार को किसी भी सुहागिन स्त्री को लाल ब्लाउज, लाल रिब्बन, लाल चूड़ी, कुमकुम, लाल सिंदूर, पान-सुपारी, हल्दी, स्वादिष्ट फल, फूल आदि देकर संतुष्ट करे |
अगर कुंवारी कन्या या पुरुष इस प्रयोग को कर रहे है तो वो अंजुली भर कर चने भी सुहागिन स्त्री को दे , ऐसा करने से उनका मंगल दोष शांत हो जायेगा | इस प्रयोग में व्रत रहने की आवश्यकता नहीं है अगर आप शाम को न कर सके तो सुबह कर सकते है |
यह अनुभूत प्रयोग है और आठ सप्ताह में ही चमत्कारिक रूप से शादी-विवाह की समस्या, धन की समस्या, व्यापार की समस्या, गृह-कलेश, विद्या प्राप्ति आदि में चमत्कारिक रूप से लाभ होता है |
2. जिस कन्या का विवाह न हो पा रहा हों, वह भगवती पार्वती के चित्र या मूर्ति के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाकर प्रतिदिन निम्न मंत्र का 11 माला जाप 10 दिनों तक करें- हे गौरि शंकरार्द्धागि यथा शंकरप्रिया। तथा मां कुरू कल्याणि कान्तकान्तां सुदुर्लभाम्।।
3. जिन लडकों का विवाह नहीं होता है, उन्हें निम्नलिखित मंत्र का नित्य 11 माला जप करना चाहिए- ओम् क्लीं पत्नी मनोरम देहि मनोवृत्तानुसारिणीम। तारणी दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भावाम ||
4. विवाह योग्य लडके और लडकियां प्रत्येक गुरूवार को स्नान के जल में एक चुटकी पिसी हल्दी डालकर स्नान करें। गुरूवार के दिन आटे के दो पेडों पर थोडी-सी हल्दी लगाकर, थोडी गुड और चने की दाल गाय को खिलाएं। इससे विवाह का योग शीघ्र बनता है।
6. बृहस्पतिवार को केले के वृक्ष के समक्ष गुरूदेव बृहस्पति के 108 नामों के उच्चारण के साथ शुद्ध घी का दीपक जलाकर, जल अर्पित करें।
7. यदि किसी कन्या की कुंडली में मंगली योग होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा है तो वह मंगलवार को “मंगल चंडिका स्तोत्र” का तथा शनिवार को “सुंदरकांड” का पाठ करें।
8. किसी भी शुक्लपक्ष की प्रथमा तिथि को प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर राम-सीता के संयुक्त चित्र का षोडशोपचार पूजन कर अग्रलिखित चौपाई का 108 जाप करे। यह उपाय 40 दिन किया जाता है। कन्या को उसके अस्वस्थ दिनों की छूट है। जब तक वह पुन: शुद्ध न हो जाए, तब तक यह प्रयोग न करें। अशुद्ध तथा शुद्ध होने के बाद के दिनों को मिलाकर ही दिनों की गिनती करनी चाहिए। कुल 40 दिनों में कहीं न कहीं रिश्ता अवश्य हो जाएगा। चौपाई इस प्रकार है- सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पुरहि मनकामना तुम्हारी।|
9. जो कन्या पार्वती देवी की पूजा करके उनके सामने प्रतिदिन निम्नलिखित मंत्र का एक माला जप करती है, उसका विवाह शीघ्र हो जाता है- कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोपसुतं देवं पतिं मे कुरू ते नम:।।
ज्योतिष शास्त्रमें मंगल गृह को एक क्रूर गृह के रूप में जाना जाता है ।
मंगल दोष: - जब मंगल जनम कुंडली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, आठवे, बारवे भाव में स्थित होने पर कुंडली मंगल दोष से युक्त मानी जाती है। मंगल के उपरोक्त भाव जो व्यक्तित्व, परिवार, दाम्पत्य, जीवन साथी की आयु, व भोग से सम्बन्ध रखते है। मंगल जेसे क्रूर गृह की इन भावो में स्थिति निश्चय ही उपरोक्त जीवन के महत्व पूर्ण घटको पर दुस्प्रभाव डालकर परिवार को घोर संकट में डाल देती है। ऐसी मान्यता सामान्यतः समाज में बनी हुई है। विवाह में विलम्ब के लिए भी मांगलिक दोष को उत्तरदाई माना जाता है जब की यह जरूरी नहीं है की केवल मंगल की इन भावो में स्थिति से विवाह में विलम्ब होता है या वैवाहिक जीवन में इसी कारण से कस्ट रहता है।
इस सन्दर्भ में मेरी मान्यता है की सदेव मंगल अमंगलकारी नहीं होता। कई परिस्थितियो में मंगल शुभ परिणाम प्रदान करता है। मंगल की जनम कुंडली के विभिन्न भावो में स्थिति व उसके प्रभाव को जाने: -
1- लग्न में मंगल: लग्न को तन भाव भी कहते है इससे व्यक्तित्व, शारीरिक सरंचना, चरित्र, स्वास्थ्य, जीवन शक्ति का विश्लेशण किया जाता है। लग्न में मंगल की स्थिति से जातक क्रोधी, रुधिर विकार, दुर्घटना, बल पूर्वक कब्ज़ा करना, हठवादी, उगर्ता बनी रहती है। परिवार बल से नहीं प्रेम व समंजश्य से चलता है।
लग्न में मंगल के होने से इसकी चौथी दृष्टि सुख भाव पर, सातवी दृष्टि सप्तम भाव जो जीवन साथी का होता है आठवी दृष्टि आठवा भाव जो जीवन साथी के आयु का होता है। परिणाम जातक क्रोधी, उससे परिवार में अशान्ति, जीवन साथी पर अनावश्यक दबाव व जीवन साथी के आयु पर इसका दुस्प्रभाव।
इस तरह से लग्न का मंगल दांपत्य भाव को दुष्प्रभावित करता है।
2- चतुर्थ (सुख - परिवार) सुख भाव में मंगल के स्थिति सुख को कम करती है। इसके चतुर्थ दृस्टि सप्तम दांपत्य भाव, सप्तम दृष्टि कर्म भाव, आठवी दृष्टि लाभ भाव पर। परिणाम पारिवारिक सुख, दाम्पत्य, कर्म व सम्मान एवं लाभ पर विपरीत प्रभाव तो जीवन को दुष्कर बना देगा।
3- सप्तम भाव में मंगल- सातवा भाव दाम्पत्य का होता है इसकी चतुर्थ दृस्टि कर्म भाव, सप्तम दृष्टि लग्न या तन पर व आठवी दृस्टि धन व कुटुंब भाव पर। जब जीवन साथी, कर्म व धन भाव पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा तो निश्चय ही जीवन कठिनाईओं से भरा होगा।
4 आठवा भाव: - यह जीवन साथी की आयु का भाव होता है यहाँ से चौथी दृष्टि लाभ भाव पर, सातवी दृष्टि धन व कुटुंब भाव पर एवं आठवी दृष्टि पराक्रम भाव पर। मंगल की इस भाव में स्थिति जीवन साथी की आयु, धन व पराक्रम पर दुष प्रभाव अंततः दांपत्य को क दुस्प्रभावित करेगा।
5 - व्यय भाव- इस भाव में मंगल की स्थिति मानव के भोग, खर्च करने के सामर्थ्य, निद्रा पर दुष्प्रभाव, इसकी चतुर्थ दृष्टि पराक्रम, सप्तम दृष्टि रोग, अस्थम दृस्टि दाम्पत्य भाव पर। यहाँ मंगल बेठ कर भोग, पराक्रम, शत्रु भाव व दाम्पत्य पर पड़ेगी। परिणाम दाम्पत्य सुख का अभाव होगा।
उपरोक्त विवरण से मंगल की 1, 4, 7, 8, 12 भावो में स्थिति में पड़ने वाले दुष्प्रभावो का विश्लेषण किया। पर मंगल सदेव अमंगल हीं नहीं करता है। कई बार स्वयं की कुंडली के विभिन्न योगो से व कई बार अपने जीवन साथी के कुंडली में स्थित योगो से मंगल दोष जाता है का परिहार हो।
जब दोष का निराकरण स्वयं की कुंडली से होता है आत्म गत मंगल दोष निवारण कहलाता है और जब जीवन साथी की कुंडली के योगो के अंतर्गत निवारण होता है तो परगत से मंगल दोष परिहार कहते है।
मंगल कर देता है पति-पत्नी के सुख नष्ट
ब्रा वैवर्त पुराण के अनुसार भगवान ने वाराहावतार लिया व हिरण्याक्ष द्वारा चुराई गई पृथ्वी का उद्धार हिरण्याक्ष को मार कर किया। पृथ्वी देवी ने प्रसन्नतापूर्वक भगवान को पति के रूप में वरण किया। भगवान विष्णु पृथ्वी के साथ एक वर्ष तक एकांत में रहे। इस संयोग से मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई। मंगल एक पापी और क्रूर ग्रह हैं। इन्हें भूमिपुत्र, कुज आदि नामों से भी पुकारा जाता है। कुज का अर्थ होता है कु अर्थात् खराब या पापी और "ज" अर्थात् जन्मा हुआ, अर्थात् पाप से जन्मा हुआ।
इसके अतिरिक्त मंगल दाम्पत्य, धैर्य, साहस, ऊर्जा और उत्तेजना का प्रतिनिधित्व करते हैं। मंगल का विचार वर-कन्या की लग्न कुण्डली दोनों से करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्रों में शुभ ग्रहों की स्थिति और पाप ग्रहों की दृष्टि अच्छी मानी नहीं गई है। विशेष कर वैवाहिक जीवन हेतु सप्तम और अष्टम भावों में मंगल की स्थिति और इन भावों पर उनकी दृष्टि हो तो इन दोषों के परिहार की संभावना तलाश करनी चाहिए। सप्तम भाव जीवन साथी का स्थान है, इस भाव में स्थित मंगल पति और पत्नी के सुख को नष्ट करते हैं। अष्टम भाव गुदा और लिंग-योनि का है अत: इस भाव में मंगल की अवस्थिति से रोग की संभावना रहती है।
किसी स्त्री या पुरूष की कुंडली के 1, 4, 7, 8 और 12वें में से किसी एक में मंगल हों तो उसका प्रभाव उसके जीवन साथी से संबंधित किसी न किसी क्षेत्र पर अवश्य प़डता है। दक्षिण भारत के कुछ विद्वानों के मतानुसार द्वितीय घर में भी मंगल रहने से मंगल दोष होता है क्योंकि द्वितीय घर पति या पत्नी का अष्टम अर्थात् दोनों की आयु का घर होता है। इस भाव से परिवार सुख का विचार भी किया जाता है। परिणामत: ऎसा व्यक्ति अपने जीवन साथी के अधिकारों का बलपूर्वक हनन करता है। ऎसे में उसे मानसिक और दैहिक पी़डा होना स्वाभाविक है, जिससे उसका जीवन तनावग्रस्त और कष्टकारक होकर नारकीय हो जाता है।
ऎसी çस्त्रयां या पुरूष अपने ह्वदय में छिपी वेदना को कब तक दबा कर रखेंक् कभी न कभी सागर सा गंभीर मन भी व्यथित होकर हलचल कर उठता है अत: भावातिरेक में वह व्यक्ति जैसे ही अपनी पी़डा को व्यक्त करता है तो मंगल से दूषित व्यक्ति सरल, सरस और भावपूर्ण भाषा शैली का उपयोग करने की अपेक्षा पीç़डत व्यक्ति के मन को और अधिक प्रताç़डत करता है। इस प्रकार पति, पत्नी में सभ्यता, शिष्टता और विनम्रता में कमी आने लगती है, जिसकी परिणति वैवाहिक जीवन में कुटता के रूप में होती है।
यदि वर और कन्या दोनों का मंगल समान हो, या कोई अन्य पाप ग्रह मंगल के समान स्थित हो, तो उस स्थिति में विवाह शुभ होता है और दोनों की दीर्घायु तथा पुत्र आदि संतान सुखों में वृद्धि करने वाला हो सकता है। ""चंद्रमा मनसो जात:""। यजुर्वेद के अनुसार चन्द्रमा मन के कारक ग्रह हैं तथा शुक्र रति का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुछ ग्रंथकारों ने चन्द्रमा और शुक्र से भी मांगलिक दोष का विचार करने का आग्रह किया है क्योंकि चन्द्रमा मन के तथा शुक्र स्त्री कारक ग्रह माने गये हैं। चन्द्र से चतुर्थ भाव में मंगल होने से जातक सुखहीन तथा दरिद्र होता है और स्त्री की आयु पति की अपेक्षा कम होती है। इसी भांति चन्द्र से सप्तम मंगल हों, तो उस मनुष्य की स्त्री दु:शीला, कटु स्वभाव की एवं अप्रियवादिनी होती है। श्री मंत्रेश्वरकृत फलदीपिका के अनुसार भी चन्द्र और शुक्र से सप्तमस्थ मंगल दोष के कुछ फल बताए गए हैं:
1. जातक वर या कन्या की विवाह देर से होना।
2. जातक की आयु कम होना।
3. पति-पत्नी की आपस में तकरार होना।
4. दोनों का आपस में मतभेद होना।
5. दोनों में संबंध विच्छेद होना।
6. नौकरी या व्यवसाय के चलते एक दूसरे से दूर रहना।
फलित ग्रंथों में अनेक स्थलों पर चन्द्र और शुक्र से भी 1, 4, 7, 8 इत्यादि स्थानों पर मंगल की स्थिति अशुभ मानी गयी है। मांगलिक दोष के संबंध में यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि प्राचीन संहिता और जातक ग्रंथों तथा मुहूर्त ग्रंथों में वर-कन्या की कुण्डलियों में ग्रह स्थितियों के मिलान, विशेष कर मांगलिक दोष की भयोत्पादक भ्रामक स्थिति के बारे में वर्णन नहीं मिलता है। मांगलिक शब्द का अर्थ, मंगलमय न होकर, मंगल ग्रह से उत्पन्न दोष हो गया। अच्छे-भले संबंध, बनने से पहले ही टूट जाते हैं। मांगलिक दोष का निर्णय करना इतना सरल एवं स्थूल नहीं है कि मात्र पहले, चौथे, सातवें, आठवें तथा बारहवें भाव में मंगल की उपस्थिति से उसका निर्णय कर दिया जाए। वास्तविकता यही है कि अधिकतर प्रसंगों में मांगलिक दोष का निर्णय स्थूलता के आधार पर किया जा रहा है।
वैवाहिक जीवन से संबंधित इस सामान्य सिद्धांत को स्थूल रूप में ग्रहण कर लेने से ब़डी भ्रमपूर्ण और विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गयी है। वैवाहिक मेलापक में अन्य पाप ग्रह विस्मृत हो गये। आजकल अधिसंख्य ज्योतिषी भाई ल़डके-ल़डकी के नक्षत्रों पर आधारित गुण मिलान के उपरांत स्थूल रूप से निर्मित जन्म कुण्डलियों के मिलान का निर्णय मांगलिक योग के आधार पर ही करते हैं। मांगलिक दोष संबंधी अल्प ज्ञान और गलत धारणाओं के कारण ही बहुत से सुयोग्य ल़डकियों और ल़डकों का विवाह नहीं हो पाता अथवा कई बार विलंब से बेमेल विवाह हो जाता है। कई बार तथाकथित मांगलिक दोष के दोषारोपण के फलस्वरूप ल़डके या ल़डकी के माता-पिता को व्यक्ति की वास्तविक जन्मपत्रिका, या जन्म समय आदि को छिपाते हुए भी पाया गया है। भारतीय ज्योतिष के आधार पुरूष महर्षि पाराशर ने अपने ग्रंथ "वृहतपाराशर होराशास्त्र" में मंगल दोष का कोई उल्लेख नहीं किया है और उन्होंने ही क्यों, उनके अतिरिक्त भी अन्य ज्योतिष युग पुरूषों तथा प्रवर्तकों, तथा बैद्यनाथ, कल्याण वर्मा आदि ने मंगल दोष, अथवा मांगलिक दोष नाम से किसी योग का विचार नहीं दिया है, फिर भी यह तथ्य निर्विवादित है कि मंगल नैसर्गिक रूप से पाप ग्रह हैं।
स्त्री जातक के विचार में पाराशर जी का कथन है कि : लग्ने व्यये वापि सप्तमे वाष्टमे कुजे। शुभदृगयोग हीने च पतिं हन्तिं न संशय।। पहले, चौथे, सातवें, आठवें तथा बारहवें भावों में शुभ दृष्टि विहीन मंगल पतिहंता होते हैं। वर्तमान में प्रचलित श्लोक में पाराशर जी के श्लोक दूसरी पंक्ति के "शुभदृययोग हीने" का कहीं कोई उल्लेख ही नहीं है। इन भावों में स्थित मंगल पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो, अथवा न हो, मांगलिक दोष मान लिया जाता है। वर की कुंडली में मंगल दोष वधू के लिए तथा वधू की कुंडली में वर के लिए हानिप्रद होता है। मंगल दोष कब होगा, कब नहीं, इसका कोई उल्लेख नहीं किया जाता, यद्यपि, पंचांगकर्ता, इन वचनों की पुष्टि हेतु, निम्न श्लोक का उल्लेख कर दिया करते हैं: लग्ने व्यये च पाताले जामित्रेचाष्टमे कुजे। कन्याभृर्त विनाशाय भर्ता पत्नी विनाशकृत।।
वराहमिहिर ने स्त्रीजातकाध्याय के श्लोक 9 में सप्तम भाव में पाप ग्रहों की स्थिति को वैधव्यकारक बताया है। इनके मतानुसार सप्तमस्थ मंगल स्थिति बाल्यकाल में वैधव्यकारक है यह कथन युक्तियुक्त है। सामान्य नियम है कि अशुभ ग्रह जिस भाव में बैठते हैं, उसी की हानि करते हैं। सप्तम स्थान पति/पत्नी का स्थान है अत: इस भाव में स्थित अति पाप ग्रह पति/पत्नी के लिए घातक माना जाता है। वर्तमान में बाल विवाह वैधानिक रूप से प्रतिबंधित है तो इसका अर्थ अल्प समय में वैधव्य प्राप्त होना, अथवा संबंध विच्छेद लिया जा सकता है।
इसी अध्याय के आगे श्लोक 14 में तो वे स्पष्ट रूप से अष्टमस्थ मंगल को वैधव्यकारक कहते हैं। जातक पारिजातकार, वैैद्यनाथ दैवज्ञ के मतानुसार लग्न से सप्तम में समस्त पाप ग्रह हों तो स्त्री वैधव्य प्राप्त करती है, अर्थात् वैद्यनाथ सप्तम भाव में केवल मंगल की उपस्थिति को वैधव्यकारक नहीं मानते। लगभग सभी फलित ग्रंथों के अनुसार स्त्री जातक की कुण्डली में सप्तम भाव में स्थित सभी ग्रह, भले ही वे पाप ग्रह हों, शुभ-अशुभ फलदायक होते हैं। अंतर इतना है कि अशुभ अधिक पाप फल करते हैं तथा शुभ ग्रह कम पाप फल देते हैं।
क्या है मांगलिक दोष?
मंगली दोष
मंगल बाकि ग्रहों की भांति कुण्डली के बारह भावों में से किसी एक भाव में स्थित होता है. बारह भावों में से कुछ भाव ऐसे हैं जहां मंगल की स्थिति को मंगलीक दोष के रुप में लिया जाता है.
कुण्डली में जब लग्न भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव और द्वादश भाव में मंगल स्थित होता है तब कुण्डली में मंगल दोष माना जाता है. सप्तम भाव से हम दाम्पत्य जीवन का विचार करते हैं. अष्टम भाव से दाम्पत्य जीवन के मांगलीक सुख को देखा जाता है. मंगल लग्न में स्थित होने से सप्तम भाव और अष्टम भाव दोनों भावों को दृष्टि देता है. चतुर्थ भाव में मंगल के स्थित होने से सप्तम भाव पर मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि पड़ती है. द्वादश भाव में यदि मंगल स्थित है तब अष्टम दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है.
इसके अतिरिक्त सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए हम पांच बातों का विचार करते हैं -
स्वास्थ्य
भौतिक सम्पदा
दाम्पत्य सुख,
अनिष्ट का प्रभाव,
जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अच्छी क्रय शक्ति.
ज्योतिष में इन पांचों बातों का प्रतिनिधित्व लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादश भाव करते हैं. इसीलिए इन पांचों भावों में मंगल की स्थिति को मंगलीक दोष का नाम दिया गया है.
वैदिक ज्योतिष में राहु नैसर्गिक पापी ग्रह के रूप में जाना जाता है.इस ग्रह की अपनी कोई राशि नहीं है अत: जिस राशि में होता है उस राशि के स्वामी अथवा भाव के अनुसार फल देता है.राहु जब छठे भाव में स्थित होता है और केन्द्र में गुरू होता है तब यह अष्टलक्ष्मी योग (Ashtalakshmi yoga) नामक शुभ योग का निर्माण करता है. अष्टलक्ष्मी योग (Ashtalakshmi yoga) में राहु अपना पाप पूर्ण स्वभाव त्यागकर गुरू के समान उत्तम फल देता है. अष्टलक्ष्मी योग (Ashtalakshmi yoga) जिस व्यक्ति की कुण्डली में बनता है वह व्यक्ति ईश्वर के प्रति आस्थावान होता है.इनका व्यक्तित्व शांत होता है.इन्हें यश और मान सम्मान मिलता है.लक्ष्मी देवी की इनपर कृपा रहती है.
दो पापी ग्रह राहु और शनि जब जन्मपत्री में क्रमश: एकादश और षष्टम में उपस्थित होते हैं तो कपट योग (Kapata Yoga) बनता है.जिस व्यक्ति की कुण्डली में कपट योग (Kapata Yoga) निर्मित होता है वह व्यक्ति अपने स्वार्थ हेतु किसी को भी धोखा देने वाला होता है .इनपर विश्वास करने वालों को पश्चाताप करना होता है.सामने भले ही लोग इनका सम्मान करते हों परंतु हुदय में इनके प्रति नीच भाव ही रहता है.
पिशाच योग (Pishach Yoga) राहु द्वारा निर्मित योगों में यह नीच योग है.पिशाच योग (Pisach Yoga) जिस व्यक्ति की जन्मपत्री में होता है वह प्रेत बाधा का शिकार आसानी से हो जाता है.इनमें इच्छा शक्ति की कमी रहती है.इनकी मानसिक स्थिति कमज़ोर रहती है, ये आसानी से दूसरों की बातों में आ जाते हैं.इनके मन में निराशात्मक विचारों का आगमन होता रहता है.कभी कभी स्वयं ही अपना नुकसान कर बैठते हैं.
चांडाल योग (Chandal Yoga) गुरू और राहु की युति से निर्मित होता है. चांडाल योग (Chandal Yoga) अशुभ ग्रह के रूप में माना जाता है. चांडाल योग (Chandal Yoga)जिस व्यक्ति की कुण्डली में निर्मित होता है उसे राहु के पाप प्रभाव को भोगना पड़ता है. चांडाल योग (Chandal Yoga) में आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है.नीच कर्मो के प्रति झुकाव रहता है.मन में ईश्वर के प्रति आस्था का अभाव रहता है.