कालसर्प योग क्या है? और इस योग को कालसर्प योग क्यों कहा जाता है, शास्त्रों का अध्ययन करने पर हमने पाया राहू के अधिदेवता काल अर्थात यमराज है और प्रत्यधि देवता सर्प है, और जब कुंडली में बाकी के ग्रह राहु और केतु के मध्य आ जाते तो इस संयोग को ही कालसर्प योग कहते है।
वास्तव में प्राणी के जन्म लेते है उसकी कुंडली में ग्रहो का एक अद्भुत संयोग विद्धमान हो जाता है जो समय के अनुसार चलता जाता है, ऐसे ही ग्रहो की गति बदलते बदलते एक ऐसे क्रम में आ जाती है जिसमे सभी ग्रहों की स्थिति राहु और केतु के मध्य आ जाती है, इसमें राहु की तरफ सर्प का मुख होता है और केतु की तरफ सर्प की पूँछ होती है ऐसा माना जाता है, इस संयोग के कारण ही व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग आ जाता है, वैसे काल सर्प का जो अर्थ ज्योतिष ने बताया है वो है ‘समय’ का सर्प के सामान वक्र होना, जिसकी कुण्डली में यह योग होता है उसके जीवन में काफी उतार चढ़ाव और संघर्ष आता है। इस योग को अशुभ माना गया है।
राहु और केतु ग्रह होते हुए भी ग्रह नहीं है, ऋग्वेद के अनुसार राहु केतु ग्रह नहीं हैं बल्कि असुर हैं, राहु केतु वास्तव में सर और धड़ का अलग अलग अस्तित्व है, जो की स्वर्भानु दैत्य के है, ब्रह्मा जी ने स्वरभानु को वरदान दिया जिससे उसे ग्रह मंडल में स्थान प्राप्त हुआ। स्वरभानु के राहु और केतु बनने की कथा सागर मंथन की कथा का ही एक भाग है।
कालसर्प योग कैसे बनता है ?
मान लो यदि कुंडली के पहले घर में राहू स्थित है और सातवे घर में केतु तो बाकी के सभी सात गृह पहले से सातवे अथवा सातवे से पहले घर के बीच होने चाहिए! यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात यह है की सभी ग्रहों की डिग्री राहू और केतु की डिग्री के बीच स्थित होनी चाहिए, यदि कोई गृह की डिग्री राहू और केतु की डिग्री से बाहर आती है तो पूर्ण कालसर्प योग स्थापित नहीं होगा, इस स्थिति को आंशिक कालसर्प कहेंगे ! कुंडली में बनने वाला कालसर्प कितना दोष पूर्ण है यह राहू और केतु की अशुभता पर निर्भर करेगा !
क्यों है राहु केतु कष्टकारी ग्रह
सामन्यतया ग्रह घड़ी की विपरीत दिशा में चलते हैं वहीं राहु केतु घड़ी की दिशा में भ्रमण करते हैं। राहु केतु में एक अन्य विशेषता यह है कि दोनों एक दूसरे से सातवें घर में स्थित रहते हैं. दोनों के बीच 180 डिग्री की दूरी बनी रहती है, जैसा की हम जानते है की राहु और केतु स्वर्भानु दैत्य के अंश से बने है और दैत्य सदैव प्राणियों के लिए कष्टकारी ही रहे है तो राहु और केतु कैसे शुभ हो सकते है।
कालसर्प दोष का निवारण
हमारा वैदिक ज्योतिष शास्त्र ईश्वर की देन है, जो कुछ आपके प्रारब्ध में लिखा है उसे आप जप तप पूजा इत्यादि के द्वारा टाल भले ही न सके लेकिन उसका प्रभाव नगण्य करने तक की क्षमता रखता है, कालसर्प दोष है तो इसका निवारण भी है, भगवन भोलेनाथ के द्वार से कोई निराश नहीं जाता, जिसकी भी कुंडली में कालसर्प योग हो वह श्रावण मास में प्रतिदिन रूद्र-अभिषेक कराए एवं महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज करें।
कालसर्प पूजा क्या है ?
वैदिक ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु और केतु छाया ग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवें भाव में होते हैं.जब अन्य ग्रह क्रमसः इन दोनों ग्रहों के बीच आ जाते हैं तब कालसर्प योग बनता है. कालसर्प योग (Kalsarp Yoga) में त्रिक भाव एवं द्वितीय और अष्टम में राहु की उपस्थिति होने पर व्यक्ति को विशेष परेशानियों का सामना करना होता है परंतु ज्योतिषीय उपचार से इन्हें अनुकूल बनाया जा सकता है, उज्जैन विश्वभर में तिलभर ज्यादा होने की विशेष उपलब्धि और ख्याति प्राप्त है, और साथ ही यह महाकाल की नगरी है इसलिए यहाँ पर सच्चे मन से की गयी पूजा विशेष फलदायी होने के साथ साथ करने वाले और कराने वाले पर भगवान शिव के परिवार की कृपा और अन्य देवी-देवताओं का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है, ऐसा ग्रंथों में उल्लेख है।
कालसर्प पूजा किसको करवाबी चाहिए
जिन प्राणियों की कुंडली में ७ ग्रहो यथा सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि कुछ इस प्रकार से जमे हो की उनकी स्थिति राहू और केतु के बीच आ जाती है तो उस मनुस्य कुंडली में कालसर्प दोष का निर्माण होता है, और ऐसे मनुष्य को कालसर्प पूजा करवानी चाहिए।
कालसर्प पूजा क्यों करवानी चाहिए ?
जिन व्यक्तियों के जीवन में निरंतर संघर्ध बना रहता हो, कठिन परिश्रम करने पर भी आशातीत सफलता न मिल रही हो, मन में उथल - पुथल रहती हो, जीवन भर घर, बहार, काम काज, स्वास्थ्य, परिवार, नोकरी, व्यवसाय आदि की परेशानियों से सामना करना पड़ता है ! बैठे बिठाये बिना किसी मतलब की मुसीबते जीवन भर परेशान करती है, इसका कारण आपकी कुंडली का कालसर्प योग हो सकता है, इसलिए अपनी कुंडली किसी विद्वान ब्राह्मण को अवश्य दिखाए क्युकी कुंडली में बारह प्रकार के काल सर्प पाए जाते है, यह बारह प्रकार राहू और केतु की कुंडली के बारह घरों की अलग अलग स्थिति पर आधारित होती है, अब आपकी कुंडली में कैसा कालसर्प है ये विशुध्द पंडित जी बता सकते है, इसलिए अविलम्ब संपर्क करिये पंडित सुनील गुरु से और कुंडली के सभी प्रकार के कालसर्प योग का निदान एवं निराकरण करवाए|ाये।
कालसर्प दोष के लक्षण
1 कालसर्प दोष मनुष्य के भाग्य को मंद करता है ।
अधिक प्रयत्न करने पर भी असफलता मिलती है ।
2 अपनी मेहनत का पूर्ण फल नही मिलता ।
नोकरी में पदोन्नति नही होती ,जबकि उससे अधिनस्थ व्यक्तियो की उन्नति हो जाती है ।
3 व्यवसाय में बार बार हानि उठानी पड़ती है ।अथवा बार बार व्यवसाय या कार्य व्यापार का स्थान बदलना पड़ता है ।
4 मित्रों व रिश्तेदारों से ठगा जाता हैं , बार बार धोखा होता है ।
अकारण कलंकित होना पड़ता है , वृथा मुक़द्दमे बाजी भी झेलनी पड़ती है ।
संतान या तो उन्नति नही कर पाती या विद्या अधूरी रहती है ।
5 संतान हेतु व्यवसाय में लगाया धन नष्ट हो जाता हैं । यदि संतान सुशिक्षित हो तो उसके लिए अच्छे वर - वधु मेलापक नही हो पाता है । 6 उसे पारिवरिक शान्ति प्राप्त नही होती ।अनेक संघर्षो व चिन्ताशील रहने से स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है , दुष्भावनाये उसे घेर लेती है , ऐसा व्यक्ति नकारात्मक भावनाओं से वशीभूत हो जाता है। उसकी सकारात्मक सोच समाप्त हो जाती है ।भविष्य को लेकर चिंतित रहता है,
7 नया कार्य करने का साहस नही रहता । बार बार चिकित्सा करने पर भी लाभ नही मिलता ।
कभी कभी चोट दुर्घटनाओ का शिकार हो जाता है ।उसके शत्रु अनायास ही पैदा होते है ।
8 उसके द्वारा किये गये कार्य का यश दूसरा व्यक्ति प्राप्त कर लेता है ।
9 धर्म - कर्म में मन नही लगता ।शरीर शुद्धि खान -पान पर ध्यान नही देवे, आलस्य अधिक आये
अगर आप मांगलिक है या फिर मांगलिक के कारण आपका विवाह नही हो पा रहा है ।तो भी आप हमसे संपर्क कर सकते है ।
पैशाचिक पीड़ा या टोना टोटका से पीड़ित होवे तो कालसर्प दोष के पाप ग्रहों की शान्ति कराये ।
ये सभी समस्या आपके साथ है तो आप हमें फोन करे ।
कालसर्प दोष निवारण
1. काल सर्प योग का परिचय
कुंडली के बारह भावों में विभिन्न ग्रहों की स्थितियां बनती हैं जिनके आधार पर विश्लेषण करने पर योग बनते हैं. इन्हीं योगों में एक स्थिति बनती हैं - काल सर्प दोष की.
काल सर्प योग में काल यानि राहु के नक्षत्र के स्वामी यम यानि काल और सर्प यानि केतु के नक्षत्र स्वामी आश्लेषा के स्वामी सर्प से मिल कर बनता है.
इस योग में राहु और केतु के बीच सभी गृह आते हैं और इसीलिए इन दोनों छाया ग्रहों का आपके सम्पूर्ण भाग्य पर प्रभाव पड़ता है.
कालसर्प योग से आपके सभी कार्यों में बाधा आती है, कड़ी मेहनत का कोई परिणाम नहीं निकलता, संतान से कष्ट मिलता है और शत्रु आप पर हावी होने लगते हैं.
सभी भावों के हिसाब से पूरे बारह कालसर्प योग बनते हैं.
1- अनंत कालसर्प योग
2- कुलिक कालसर्प योग
3- वासुकि कालसर्प योग
4- शंखपाल कालसर्प योग
5- पद्म कालसर्प योग
6- महापद्म कालसर्प योग
7- शेषनाग कालसर्प योग
8- विषाक्त कालसर्प योग
9- घातक कालसर्प योग
10- तक्षक कालसर्प योग
11- कर्कोटक कालसर्प योग
12- शंखनाद कालसर्प योग
हमने काल सर्प दोष की पहचान और निवारण दोनों दिए हैं, आप अपनी जन्म पत्री में इनका मिलान कर के कालसर्प दोष होने की पुष्टि कर सकते हैं.
2. अनंत कालसर्प योग
योग:
यदि जातक के जन्मांग के प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो अनंत काल सर्प योग होता हे.
प्रभाव:
जातक के घर में कलह होती रहती है. परिवार वालों या मित्रों से धोखा मिलने की आशंका हमेशा बनी रहती है. मानसिक रूप से व्यक्ति परेशान रहता है, हालांकि ऐसे लोग सिर्फ अपने मन की ही करते हैं.
उपाय:
अनन्त कालसर्प दोष होने पर नागपंचमी के दिन एकमुखी, आठमुखी या नौमुखी रुद्राक्ष धारण करें.
यदि इस दोष के कारण स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है तो नागपंचमी के दिन रांगे (एक धातु) से बना सिक्का पानी में प्रवाहित करें.
3. कुलिक कालसर्प योग
योग:
यदि जातक के जन्मांग के द्वितीय भाव में राहु और अष्टम भाव में केतु हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो यह कुलिक काल सर्प योग होता है.
प्रभाव:
इस वजह से जातक गुप्त रोग से जूझता रहता है. इनके शत्रु भी अधिक होते हैं परिवार में परेशानी रहती है और वाणी में कटुता रहती है.
उपाय:
कुलिक नामक कालसर्प दोष होने पर दो रंग वाला कंबल अथवा गर्म वस्त्र दान करें.
चांदी की ठोस गोली बनवाकर उसकी पूजा करें और उसे अपने पास रखें.
4. वासुकि कालसर्प योग
योग:
यदि जातक के जन्मांग में राहु तृतीय और केतु भाग्य भाव यानि 9वें भाव में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो वासुकि काल सर्प योग होता है.
प्रभाव:
ऐसे लोगों को भाईयों से कभी सहयोग नहीं मिलता. ऐसे लोगों का स्वभाव चिड़चिड़ा होता है. ये लोग कितना भी कष्ट क्यों न आ जाये, किसी से कहते नहीं.
उपाय:
वासुकि कालसर्प दोष होने पर रात्रि को सोते समय सिरहाने पर थोड़ा बाजरा रखें और सुबह उठकर उसे पक्षियों को खिला दें. - नागपंचमी के दिन लाल धागे में तीन, आठ या नौमुखी रुद्राक्ष धारण करें.
5. शंखपाल कालसर्प योग
योग:
यदि जातक के जन्मांग में राहु चौथे भाव में और केतु दसवें भाव में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो शंखपाल कालसर्प योग बनता है.
प्रभाव:
ऐसे लोगों का माता पिता से हमेशा अनबन बन रहता है और ये लोग पारिवारिक कलह में ही उलझे रहते हैं. इनका मित्रों के साथ भी नहीं बनता.
उपाय:
शंखपाल कालसर्प दोष के निवारण के लिए 400 ग्राम साबूत बादाम बहते पानी में प्रवाहित करें.
शिवलिंग का दूध से अभिषेक करें.
6. पद्म कालसर्प योग
योग:
यदि जातक के जन्मांग में राहु पांचवें भाव में हो और केतु ग्यारहवें भाव में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो पद्म कालसर्प योग बनता है.
प्रभाव:
इसके कारण जातक के विद्याध्ययन में कुछ व्यवधान उपस्थित होता है. परंतु कालान्तर में वह व्यवधान समाप्त हो जाता है. उन्हें संतान प्राय: विलंब से प्राप्त होती है, या संतान होने में आंशिक रूप से व्यवधान उपस्थित होता है. जातक को पुत्र संतान की प्राय: चिंता बनी रहती है.
उपाय:
शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से मिर्मित नाग चिपका दें.
- पद्म कालसर्प दोष होने पर नागपंचमी के दिन से प्रारंभ करते हुए 40 दिनों तक रोज सरस्वती चालीसा का पाठ करें.
जरुरतमंदों को पीले वस्त्र का दान करें और तुलसी का पौधा लगाए
7. महापद्म कालसर्प योग
योग:
राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो महापद्म कालसर्प योग बनता है.
प्रभाव:
इस योग में जातक शत्रु विजेता होता है, विदेशों से व्यापार में लाभ कमाता है लेकिन बाहर ज्यादा रहने के कारण उसके घर में शांति का अभाव रहता है. इस योग के जातक को एक ही चिज मिल सकती है धन या सुख. इस योग के कारण जातक यात्रा बहुत करता है उसे यात्राओं में सफलता भी मिलती है परन्तु कई बार अपनो द्वारा धोखा खाने के कारण उनके मन में निराशा की भावना जागृत हो उठती है.
उपाय:
महापद्म कालसर्प दोष के निदान के लिए हनुमान मंदिर में जाकर सुंदरकांड का पाठ करें.
नागपंचमी के दिन गरीब, असहायों को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा दें.
8. शेषनाग काल सर्प योग
योग:
यदि किसी की कुंडली के बारहवें भाव में राहु और छठे भाव में केतु के अंतर्गत सभी ग्रह विद्यमान हों तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो शेषनाग काल सर्प योग होता है.
प्रभाव:
ऐसे लोगों के खिलाफ लोग तंत्र-मंत्र का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं. इन्हें मानसिक रोग लगने की आशंका ज्यादा रहती है. यदि राहु के साथ मंगल है तो इनके सारे शत्रु परस्त हो जाते हैं. यानी इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता है. विदेश यात्रा से लाभ मिलते हैं, लेकिन साझेदारी के व्यापार में हानि उठानी पड़ती है.
उपाय:
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा पर लाल वस्त्रा सहित सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं.
किसी शुभ मुहूर्त में मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान करें.
9. विषाक्त कालसर्प योग
योग:
यदि व्यक्ति की कुंडली के ग्यारहवें भाव में राहु और पांचवें भाव में केतु सभी ग्रहों को समेटे हुए हो विषाक्त काल सर्प योग होता है.
प्रभाव:
ऐसे लोग अच्छी विद्या हासिल करते हैं. इन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है. ये उदारवादी होते हैं, लेकिन कभी-कभी पारिवारिक कलह का सामना करना पड़ता है. ये कभी भी किसी पर मेहरबान हो सकते हैं.
उपाय:
श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें.
सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी या समुद्र में नागदेवता का विसर्जन करें.
10. घातक काल सर्प योग
योग:
घातक काल सर्प योग तब बनता है, जब कुंडली के 10वें भाव में राहु और चतुर्थ भाव में केतु तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये.
प्रभाव:
ऐसे लोगों के वैवाहिक जीवन में तनाव बना रहता है. पैतृक संपत्ति जल्दी नहीं मिल पाती है. ऐसे लोग नौकरी या व्यापार के लिये हमेशा परेशान रहते हैं. कर्ज भी बहुत जल्दी चढ़ जाता है. हृदय और सांस के रोग की परेशानी बनी रहती है.
उपाय:
नित्य प्रति हनुमान चालीसा का पाठ करें व प्रत्येक मंगलवार का व्रत रखें और हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर घुलाकर चढ़ाएं तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं.
एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें.
11. तक्षक कालसर्प योग
योग:
केतु लग्न में और राहु सप्तम स्थान में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो तक्षक नामक कालसर्प योग बनता है. कालसर्प योग की शास्त्रीय परिभाषा में इस प्रकार का अनुदित योग परिगणित नहीं है. लेकिन व्यवहार में इस प्रकार के योग का भी संबंधित जातकों पर अशुभ प्रभाव पड़ता देखा जाता है.
प्रभाव:
क्षक नामक कालसर्प योग से पीड़ित जातकों को पैतृक संपत्ति का सुख नहीं मिल पाता. या तो उसे पैतृक संपत्ति मिलती ही नहीं और मिलती है तो वह उसे किसी अन्य को दान दे देता है अथवा बर्बाद कर देता है. ऐसे जातक प्रेम प्रसंग में भी असफल होते देखे जाते हैं. गुप्त प्रसंगों में भी उन्हें धोखा खाना पड़ता है. वैवाहिक जीवन सामान्य रहते हुए भी कभी-कभी संबंध इतना तनावपूर्ण हो जाता है कि अलगाव की नौबत आ जाती है.
उपाय:
कालसर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके, इसका नियमित पूजन करें.
सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं.
12. कर्कोटक कालसर्प योग
योग:
केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो कर्कोटक नाम कालसर्प योग बनता है.
प्रभाव:
ऐसे जातकों के भाग्योदय में इस योग की वजह से कुछ रुकावटें अवश्य आती हैं. नौकरी मिलने व पदोन्नति होने में भी कठिनाइयां आती हैं. कभी-कभी तो उन्हें बड़े ओहदे से छोटे ओहदे पर काम करनेका भी दंड भुगतना पड़ता है.
उपाय:
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिंदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं.
13. शंखचूड़ कालसर्प योग
योग:
केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये तो शंखचूड़ नामक कालसप्र योग बनता है.
प्रभाव:
इस योग से पीड़ित जातकों का भाग्योदय होने में अनेक प्रकार की अड़चने आती रहती हैं. व्यावसायिक प्रगति, नौकरी में प्रोन्नति तथा पढ़ाई-लिखाई में वांछित सफलता मिलने में जातकों को कई प्रकार के विघ्नों का सामना करना पड़ता है. इसके पीछे कारण वह स्वयं होता है क्योंकि वह अपनो का भी हिस्सा छिनना चाहता है. अपने जीवन में धर्म से खिलवाड़ करता है.
उपाय:
महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें.
चांदी या अष्टधातु का नाग बनवाकर उसकी अंगूठी हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करें. किसी शुभ मुहुर्त मेंअपने मकान के मुख्य दरवाजे पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें.